Saturday 6 February 2016

गुजरा जमाना



आज फिर याद आ रहा है वो गुजरा जमाना

वो बचपन में , बेफिक्री का आलम
वो नाचना वो गाना ,वो हंसना खिलखिलाना
वो मस्त जवानी का बंदिशों का जमाना
छोटे भाई को अंग रक्षक की तरह साथ ले जाकर
वो सहेलियों से मिलने जाना

आज के जमाने से बहुत अलग था,वो हमारे समय का जमाना
शादी के बाद कई दिनों तक , पति से बात करते समय
 लजाना शर्माना , वो रूठना मनाना
पीलीभीत और शाहजहाँपुर में बच्चों और दोस्तों के साथ
वो पिकनिक पर जाना ,खेतों खलिहानों में बात बात में सबका ठहाके लगाना

देहरादून से हर महीने दो महीने में मसूरी का चक्कर लगाना
वो पहाड़ों का खूबसूरत समां, वो बादलों का पास आना
२-४ महीनों में हरिद्वार जाना ,
वो हर की पेढ़ी  पर नहाना ,  मंदिरों के दर्शन करना कराना

लखनऊ में बच्चों को पढ़ाना, उनके साथ समय बिताना
वो वृन्दावन जाकर कई बार , कान्हा के संग होली  मनाना
उनकी मनमोहनी छवि को एकटक देखकर आँखों में बसाना
इस्कॉन मंदिर की सीढ़ियों पर बैठकर ,घंटों हरि धुन में डूब जाना

जानते है ,अब न लौटेगा वो गुजरा जमाना
फिर भी अच्छा लगता है और ऐसा लगता है जैसे
 किसी पुरानी अच्छी फिल्म को दुबारा देखना दिखाना
आज फिर याद आ रहा है वो गुजरा जमाना








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