Sunday 24 November 2013

आहटें

बहुत कोशिश से रोकी अपनी मुस्कराहटें
सुनी जब उनकी दबी दबी सी आहटें
रुख से हटाया उन्होंने जब पर्दा
होने लगीं हम दोनों में सुगबुगाहटें 

Tuesday 19 November 2013

गेसू

मेरे अधखुले से गेसू ,हवा में ऐसे उड़ें
जैसे कर रहे हो, इंतजार किसी का
उसे न आना था, वो न आया अब तक
रहता है अब भी ,  होंठों पर नाम उसी का 

Tuesday 12 November 2013

आसपास

क्यूं लग रहा है जैसे ,
 तू कहीं आसपास  है मेरे
दिल में दर्द सा हो रहा है ,
आँखें नम हो  रही हैं याद में तेरे 

Sunday 10 November 2013

गुजरे हुए कल

मेरा धीमे धीमे गुनगुनाना
वो उनका हौले से मुस्कराना
गुम हो गए वो बीते हुए दिन
अब बाकी बचा है सिर्फ
 पोपले मुंह से मिलने वालों को
 गुजरे हुए कल के किस्से सुनाना 

Saturday 9 November 2013

पान

वो पान नहीं खाते
पान का शौक फर्माते हैं
मुँह में गिलौरी रखकर
हौले से चबाते हैं
देख के उनकी ये अदा
हम फ़िदा हो जाते हैं

Thursday 7 November 2013

अजनबी

गर उसको मेरा ख्याल आता
पूछने वो मेरा हाल आता
क्या फायदा  शिकवे शिकायतों से
हुए जो  अजनबी अब हमारे लिए
क्यूँ  दिल में उनके लिए मलाल आता

Friday 1 November 2013

दिए

जिंदगी कि डगर में
दिए जलाओ प्रेम के
श्रद्धा और विश्वास के
ख़ुशी और उल्लास से 

Saturday 26 October 2013

हमदम

इश्क भी कमबख्त अजब शै है 
जानते है हम वो गैर के हमदम हैं 
उनसे बिछुड़े हुए हमें सालों गुजर गए 
फिर भी एक नजर देखने को जी चाहता है 


Friday 18 October 2013

रब

रब जो करता है ,अच्छा  करता है
अच्छे के लिए करता है
ये बात दीगर है
हम समझ देर से पाते हैं
अपने जज्बात नहीं रोक पाते हैं
रब को भला बुरा कह जाते हैं 

Wednesday 16 October 2013

हंसी



हंसने के लिए लाफिंग डे का इंतजार क्यों
आज मैं खिलखिला कर हंसी 
मुझे देख फूल हंसे, कलियाँ भी हंसी,
गुड़िया हंसी और बुढ़िया भी हंसी 
ये भी हंसा और वो भी हंसी 
एक हंसी से हुई अनेक हंसी 
यारा तुम भी हंसो, दुनिया भी हंसे 
हंसी बढ़ेगी, बढ़ेगी हंसी 
:D :D :D :D :D :D :D

नसीहत

जवानी मे मिली, इक नसीहत 
रोज किसी से ना मिला करो 
होगा इश्क़, होगी फजीहत

अब इस उम्र में कहते हैं लोग 
मोहतरिमा ज्यादा मिला जुला करो 
बढ़ेगा प्यार और अपनापन,
ना होगा डिप्रेशन 
और रहेगी दुरुस्त तबियत 

Monday 14 October 2013

आगोश

बादल ने अपने आगोश में चंदा को लिया 
चंदा ने अपनी चांदनी से उसे ठंडा किया 
बादल ने जब सूरज को अपने आगोश में छिपा लिया 
सूरज ने अपनी किरणों से उसे गर्मा दिया 
माँ ने जब अपने लाल को 
 आगोश में ले कर कलेजे से लगाया
अपनी ममता की ठंडक दी
प्यार की तपिश से गरमाया 
और खुद को भी तृप्त पाया 

Friday 11 October 2013

तस्वीर


जिंदगी की आखिरी तस्वीर देखने की
 कोशिश कभी हमने भी की थी यारा 
क्या करें ऐन  वक़्त पर
 मौत ही दे गयी दगा

Thursday 10 October 2013

समाज

समाज में रहकर समाज से क्यूँ नहीं लड़ना ?
मुझसे ये प्रश्न क्यूं बार बार है किया जाता?
दिल मेरा  है घबराता 
ये प्रश्न रात रात भर  है जगाता  
क्यूं मुझ पर विश्वाश नहीं है किया जाता?

समाज मे तो उसके अनुसार ही रहना होगा 
छोटों और बड़ों को लिये साथ चलना होगा 
चाहे इसे समझौता कहो या कहो मेरी मजबूरी
 मुझे यहीं जीना और है यही मरना
मुझसे बागी नहीं बना जाता 
समाज मे रहकर समाज से क्यूं नहीं लड़ना ?
मुझसे ये प्रश्न क्यूं बार बार है किया जाता?

Sunday 6 October 2013

सखी

कल एक पुरानी सखी का फोन आया 
बोली, कहाँ रहती हो सुनीता 
कभी कभी बतियाए लिया करो
 
उसकी पुरानी बातें हमें याद नहीं थाइराइड के कारण 
अपनी पुरानी बातें हम उसे याद दिलाना नहीं चाहते :p

सो हमने कहा, वो तो ठीक है, पर बतियाए क्या
तुम्हारे बच्चे दोनों बाहर, हमारे भी दोनों बाहर
तुम्हारे पति रिटायर, हमारे 2-4 महीने मे होने वाले रिटायर 
बाकी बची प्याज, नून, तेल की बात 
तो सुनो बहिनी, प्याज तो अब हो गया सौगात 
लोग मिठाई की जगह एक दूसरे के घर प्याज ले जाते हैं 
वो बोली, ऐसे ही कभी हाय बाय कर लिया करो 
हमने कहा, अच्छा फिर मिलेंगे, ओ.के. बाय बाय. 
 

Saturday 5 October 2013

परेशानी

परेशानियों में घिरी हूँ मैं ऐसे 
सागर के बीच छोटा सा टापू 
चारों ओर थपेड़े खा रहा हो लहरों से जैसे 
देख रही हूँ अकेली खड़ी चारों ओर 
परेशानी रूपी सागर का ना दिख रहा कोई छोर

Thursday 3 October 2013

दर

सैंया तेरे दर का पता जानते 
तो नंगे पाँव आते 
प्रेम का दिया जलाते
सजदे मे झुक जाते 

Sunday 29 September 2013

बादल

 हाय रब्बा देखो आसमां के
 बादल मुझे चिड़ा रहे हैं
 सैंया का रूप धर के 
 दूर भागे जा रहे हैं 

जब मैं जया जी से मिली थी


आप माने या ना माने
मैं कभी जया भादुरी जी से मिली थी
तब मैं 9th कक्षा मे पढ़ती थी
जया जी की " गुड्डी" फिल्म ही रीलीज़ हुई थी
सन् 1971 मे दिसंबर का महीना था
वो अपनी ममेरी बहन की शादी मे लखनऊ आई थी
उनकी बहन हमारे पड़ोस मे रहती थी
शादी मे मैं ना जा सकी थी
मेरे हाफ ईयर्ली पेपर्स चल रहे थे
शादी के दूसरे दिन पेपर के बाद
मैं और मेरी सहेली अपनी अपनी मम्मियों के साथ
अमीनाबाद मे गंगा प्रसाद धरमशाला पहुंचे
जहां एक रात पहले शादी का आयोजन था
नीचे ही उनके पिता तरुण भादुरी जी से मिलना हुआ
उन्होने हमे उपर एक कमरे मे बिठाया
वहां बिछे थे गद्दे ,हम नीचे ही बैठ गये
तभी सफेद साड़ी पहने जया जी
अपने लम्बे लम्बे खुले बालों को
हाथ से लपेटते हुए जूडा बनाती हुई आई
और हमारे पास ही नीचे बैठ गयी
रिश्तेदार उन्हे कुसुम बुला कर छेड़ रहे थे
गुड्डी फिल्म की नायिका का नाम कुसुम जो था
वो नाराजगी दिखाते हुए मुस्करा रही थी
इतनी प्रसिध अदाकारा को सामने पाकर
हम कुछ झिझकी और चुप ही रहीं
जया जी बोली,गुड्डी फिल्म देखी है क्या ?
हमने कहा नहीं,पेपर्स के बाद देखेंगे
वो बोली ,नीचे पार्क मे भीड़ क्यूं है
मैने बताया नीचे झंडे वाले पार्क मे
चौधरी चरण सिंह जी आ रहे हैं
तब हमने उनसे औटोग्राफ लिये
वो हंसी ,कुछ दिन बाद ये औटोग्राफ
कूड़े की टोकरी मे तो नहीं फेंके जायेंगे
हमने कहा, नहीं नहीं ऐसा होगा नहीं
फिर हमने उनसे ली विदा
उनके पिता जी ने हमसे कहा
आप किसी और को जया के
आने के बारे मे ना बताये
नहीं तो भीड़ हो जायेगी

हम खुशी खुशी घर आये
अगले दिन ये किस्सा सब सहेलियों को बताया
कुछ ने माना ,कुछ ने मजाक मे उड़ाया

आज सोचती हूँ,कि जया जी इतनी बड़ी सेलेब्रिटी हैं
रोज कई लोगों से मिलती होंगी
उन्हे हमारा मिलना क्या याद होगा
पर इतना तो याद ही होगा
सन् 1971 के दिसम्बर महीने मे
वो अपनी कज़िन कि शादी मे लखनऊ गयी थी 

Friday 27 September 2013

सबक

फुरसत के किन्ही लम्हों मे
करने लगी बीते दिनों को याद मैं 
वो बच्चों का साथ, वो घूमना फिरना 
वो पिकनिक मनाना, वो लुत्फ उठाना
अचानक वो लोग भी याद आ गये 
जिनके साथ हम मिल जुल कर मौज मनाते थे 
जो अब इस दुनिया से ले चुके विदा 
दिल मेरा दुखी हो गया 
अपने मन को मैने वहां से हटाया
और अपने भविष्य पर टिकाया 
पर ये क्या भविष्य का सोचते ही
 भगवान कृष्ण का विराट रूप याद आ गया 
ऐसा लग रहा था जैसे सारे नाते रिश्तेदार 
एक एक कर उनके मुंह मे समा रहे हैं 
घबरा गयी मैं, मेरा सिर चकराने लगा 
मैने अपना ध्यान वहां से भी हटाया 

और अपने वर्तमान पर टिकाया 
ये क्या,वर्तमान की सोचते ही 
मुझे अपना शरीर याद आया 
जो इस समय बीमारियों और दर्दों से घिरा है 
मैं बैचैन हो उठी
राम राम और गायत्री मंत्र जपने लगी 
धीरे धीरे हल्का हुआ मेरा दिलोदिमाग
मैं हुई शांत 

फुरसत के लम्हों ने 
उम्र के इस पड़ाव पर
ये सिखाया सबक 
केवल ईश्वर ही वो हस्ती है 
जिसके नाम मे मस्ती है  

Monday 23 September 2013

पग


संभल संभल पग धरियो
खंडे की धार है जिंदगी
इधर सम्भालो ऐसे
कि उधर गिरने का डर न हो 

Sunday 22 September 2013

फुर्सत

जब गृहस्थी नयी थी
तोह फुर्सत नहीं थी
अब बच्चे बाहर हैं
खुश हैं, व्यस्त हैं
यारा हम अपनी
 फुर्सत में मस्त हैं

Saturday 21 September 2013

तिनका तिनका

तुम्हारे जाने के  बाद सनम
मेरी जिंदगी तिनका तिनका हुई
 इधर संभालती हूँ तो
उधर बिखर  जाती है
उधर बटोरती हूँ तो
इधर फ़ैल जाती है
इसे समेटने की तमाम
 कोशिशें यूं ही हवा हुई 

Friday 20 September 2013

मानसून

फिजा में उठी महक
आसमां में छाई कालिमा
मौसम हुआ खुशनुमा
फुआरों  ने कहा बाय बाय
मानसून ने ली विदा


Monday 16 September 2013

प्यारी सी बच्ची

इक रात ख्वाब  में देखा मैंने
प्यारी सी बच्ची गुलाबी  फ्राक में
मेरे कान में फुसफुसाई
बोली, माँ तेरी दुनिया में बच्चियों के साथ
 जो अत्याचार हो रहा है
मुझे उससे लगता है डर
मैं नहीं आना चाहती वहां
मैंने कहा, तुझे डरने की जरूरत नहीं
तू दुर्गा, काली  रूप में आ
इन महिषासुरों और रक्तबीजों को मिटा
या अपनी व्येक्तिक पहचान लिए आ
हम कोशिश करेंगे
 इस समाज की सोच को बदलने की
तू आ बेटी आ ,बिलकुल न घबरा
आ, आ करते ही मेरी नींद खुल गयी
करने लगी विचार मैं
2 -4 जालिमों को फांसी देने से
 बच्चियों के साथ होता
अत्याचार नहीं रुकेगा
 उन्हें खुद को जालिमों
से बचाने के लिए समर्थ बनाना होगा
समाज की सोच बदलनी होगी
 बच्चियों का साथ निभाना होगा

Sunday 15 September 2013

आधुनिकता

 महानगरों की नित नयी
  ऊँची  उठती इमारतों को देखकर
मेरा  दिल जाता है घबरा
 २० वी ,२२ वी  मंजिलों पर
 एसी लगे बंद कमरों में
रहने वालों  बच्चों का
 बचपन क्या  होगा
बच्चे टी  वी, इन्टरनेट
 की देख देख रंगीनियाँ
बचपन को पीछे छोड़ ,
जल्दी हो जायेंगे जवां
कहाँ वो तितली पकड़ना
अमिया और कच्चे पके अमरुद तोड़ कर खाना
 जामुन तोडना और बटोरना,
 कहाँ गन्ना चूसना
कहाँ क्यारियों से गिलहरी भगाना

आजकल के बच्चों को चाहिए ब्रांडेड कपड़े
और ब्रांडेड पिज़्ज़ा और बर्गर
साथ पेप्सी या कोला भी जरूरी है
दूध पीना  तो बच्चों की  मजबूरी है

आधुनिकता के नाम पर हम
 अपने बच्चों को क्या परोस रहे हैं
प्रकृति से उनका नाता ही तोड़ रहे हैं
उनके बचपन  को पीछे, बहुत पीछे छोड़ रहे हैं 

Friday 13 September 2013

गृहणी का लेखन

मेरी इन सीधी  सादी पंक्तियों में
एक लेखिका का लेखन नहीं पाइयेगा
ये तो एक गृहणी के विभिन्न मूड ,
कुछ खट्टे मीठे अनुभव हैं जिन्दगी के
इसमें साहित्य का सार नहीं पाइयेगा 

पीपल का पेड़

घर के पिछवाड़े के आँगन में
 एक पीपल का बड़ा पेड़ था
चैत की पूर्णिमा थी
 चारों ओर चांदनी खिली थी
 मै रात को टहल रही थी
 मेरी नजर पीपल पर पड़ी
 पीपल  नए लाली लिए
 हरे कोमल पत्तों से सजा था
 मंद हवा बह रही थी
बहुत सुंदर नजारा था
ऐसा लग रहा था जैसे
 पेड़ ने ओढनी ओढ़ रखी है
 उस ओढ़नी  में लाली लिए
हरे  सितारे रुपहली चांदनी में
जैसे झिलमिला रहे हैं
मैं मुग्ध नयनों से
 देखती वहीँ बैठ गयी
देखते देखते मेरी आँख लग गयी
मैं  जान ही न पाई
कब रात ढल गयी 

Wednesday 11 September 2013

रात

 रात बदलती जाती है,
 रोशन सवेरे में,
 ये सिलसिला है जिंदगी का,
 मन रे, मत डर अँधेरे में  

Tuesday 10 September 2013

पाती

डबडबाई आँखों से, लिखी जो  तुम्हे पाती
खुद ही बार बार पढ़ कर, आंसुओं से  भिगो   दी
 भेजती कहाँ ,कुछ अता  पता न था तुम्हारा मालूम
 संभालती तो दुनिया को क्या बताती
किसको लिखी , क्यों लिखी ये  पाती
होती बदनामी गर, तुम बिन कैसे सह पाती   

Sunday 8 September 2013

साथ

हम से तेरा  साथ क्या छूटा
जैसे सारा जहाँ छूट  गया
कहते हैं शायद इसी  को बेबसी
जिन्दा हैं, पर दिल हमारा टूट गया 

Friday 6 September 2013

भूल गए

मेरे उनींदे से नयन
पलक  झपकाना भूल गए
खिलखिलाते थे अधर मेरे
मुस्कराना भूल गए
यारों मेरे मरने की खबर
उन्हें जरूर देना
कहना मैं उसी शहर में थी
जहाँ वो मुझे छोड़ कर भूल गए 

Wednesday 4 September 2013

खुले आसमां

खुले आसमां तले  जब सोती थी
संग तारों की बारात होती  थी
अब ए सी में सोती हूँ
बंद कमरे में तन्हा होती हूँ 

Monday 2 September 2013

gracefully accept

मोंगरे के फूलों का गजरा
जब मैं बालों  में  लगाती थी 
 अपने  घुंघराले  काले बालों  को देखकर 
खुद ही मोहित हो जाती थी 

अब बालों में चांदनी खिली  है 
 हिना  और डाई  से भी छिप  नहीं पाती है 
बढ़ती हुई  उम्र को  कैसे gracefully accept करूं 
मुझे समझ  नहीं आती है 

हर अंग प्रत्यंग के अपने ही  लटके झटके हैं
समय समय पर टेस्ट कराओ 
सबके  अपने ही नखरे हैं 
कभी पेट में गैस बन जाती है 
कभी घुटनों में पीड़ा सताती है 
बढ़ती हुई  उम्र को  कैसे gracefully accept करूं 
मुझे समझ  नहीं आती है 

कभी इसके दुखों को देखकर 
कभी उसकी  परेशानियों को सुनकर 
 मेरे  दिल  की  चाल बढ़ जाती है 
बढ़ती हुई  उम्र को  कैसे gracefully accept करूं 
मुझे समझ  नहीं आती है 

Sunday 1 September 2013

गुमशुदा

जानम तुम हमें समझ ही न पाए
 नहीं तो यूं गुमशुदा न होते
जाते समय अलविदा कहते
और मुस्कराते हुए जाते 

शाम

शाम ढले आसमां में देखी  इक छटा
इक ओर डूबते सूरज की फैली लालिमा
दूजी ओर छायी गहरी काली  घटा

ये देख मन  में विचार  आया
 यही है संसार की भी सच्चाई

इक ओर सुख और खुशियाँ
दूजी ओर दुःख, तकलीफ और तन्हाई

Tuesday 27 August 2013

अपना कोई

जब अपना कोई खोता है
कितना भी मुस्कराते हुए
दिखने  की कोशिश करो
आंखे भर भर जाती हैं
दिल जार जार रोता है 

Thursday 22 August 2013

मेरे डैडी जी

मेरे डैडी जी बहुत मेहनती हैं
वो काम के पूरे धती हैं
77 की उम्र में वो सुबह
9 बजे ऑफिस को जाते हैं
शाम को 8 बजे घर आते हैं
वो जब बहुत थक जाते हैं
खुद को कुछ इस तरह समझाते हैं
"उठ मनोहर लाल, तेरा कोई नहीं हाल
उठ मन रे उठ काम कर "
और फिर काम में जुट जाते हैं

जब मैं भी थक जाती हूँ
 अपने मन को ऐसे ही समझाती हूँ
"उठ सुनीता कत्याल, तेरा कोई नहीं हाल
उठ मन रे उठ काम कर "

सदा काम करना ,कभी रुकना नहीं
काम में जुटने की ये विशिष्ट प्रथा
अगली पीढ़ी को भी सिखाती हूँ

Wednesday 14 August 2013

कुछ ताना और कुछ बाना

जवानी में इक दिन
 दिमाग में आया इक फितूर
गर मिल जाये मुझे कोहिनूर
तो कभी कभी अमजद अली खान को
सामने बिठा कर सुना करूं  संतूर
और फिर देखूं इक फिल्म मशहूर
शाहरुख़ खान को घर बुलाकर
खिलाऊँ सेब और अंगूर

दोस्तों  उम्र के ढलते ही
गुम हो गया ये फितूर
अब लगता है चली जाऊं
दुनिया से कहीं दूर
जहाँ हर शै में दिखे
मुझे रब का नूर
हर समय रब के नाम
का प्याला पिया करूं
और रहूँ रब्बी नशे में चूर

ऐसे जिंदगी को करूँ सफल भरपूर 

Tuesday 13 August 2013

दुनिया है इक मेला

दुनिया है इक मेला
ये बहुत बड़ा झमेला
यहाँ हर कोई अकेला

यहाँ आना भी अकेला
सबको जाना भी अकेला

यहाँ तेरा भी इक रेला
यहाँ मेरा भी इक रेला
इस तेरे मेरे में
यहाँ हर कोई अकेला
ये बहुत बड़ा झमेला 

Sunday 11 August 2013

इश्क

गर हमने इश्क किया होता
कुछ किस्से विस्से सुनाते
पर क्या करें यारां
नजरों के पहरे,
 थे गहरे गहरे
ना इश्क ही किया
ना इश्क मुआ हुआ
जवानी ऐसे ही बीत गयी
 यारा ऐसे ही बीत गयी

सजना

दिल पे पड़े तेरी यादों के निशां
चाहूँ  छुपाना, इसे कैसे छुपाऊँ 
समझ न आये, इसे कैसे मिटाऊँ
सजना,सजना 

सावन का महीना

सावन का महीना,
चले पुरवाई
संग लाये बदरा,
 तेरी याद आई
अंखिया मेरी,
भर भर आई
तभी पड़ी बौछारें,

सब ने समझा,
 मैं भीग के आई

Saturday 10 August 2013

अब सुबह हुई

बचपन में सुबह सवेरे
मैं आराम से सोती थी
खिड़की से सूरज की किरणें
हौले से आकर गुनगुनाती थी
 सुबह हुई अब  सुबह हुई
मैं अलसाई सी सोती रहती
तभी आँगन में चिड़िया चहचहाती थी
 सुबह हुई अब  सुबह हुई
तब माँ आकर मेरे बाल सहलाती थी
जागो बेटी, अब सुबह हुई

अब मैं  हुई बड़ी बूढी
 ए.सी. लगाकर बंद कमरे में सोती हूँ
न सूरज की किरणें जगाती हैं
न चिड़िया वहां चहचहाती  है
मोबाइल अलार्म बजाता है
पतिदेव आकर जगाते हैं
गुडमोर्निंग श्रीमति जी
जागो, अब सुबह हुई

कल बहु रानी आएगी
वो पैर छूकर मुझे जगाएगी
पैरीपौना मम्मी जी, लीजिये
चाय पीजिये, अब सुबह हुई
मैं उसे ढेरों आशीष दूँगी
और कहूँगी ,हाँ हाँ बेटी
 अब सुबह हुई


Friday 9 August 2013

भारतवासी

 हम सब भारतवासी हैं 
हम सर्वधर्म अपनाते हैं 
हम सब त्यौहार मनाते हैं 

हम ईद पर सेविंयाँ खाते हैं 
दिवाली पर पटाखे छुड़ाते हैं 
होली पर गुलाल उड़ाते हैं 
गुरपुरब पर गुरु का लंगर खाते हैं 
क्रिसमस पर चर्च जाते हैं 

 हम सब भारतवासी हैं 
हम सर्वधर्म अपनाते हैं 
हम सब त्यौहार मनाते हैं 

माँ

माँ
माँ एक अतिसुंदर शब्द है, इसकी सुन्दरता
माँ बन कर ही अनुभव होती है
स्त्री बेटी, बहिन और पत्नी होने के साथ साथ
कई अन्य रिश्तों की
 भावनाओं से भी ओतप्रोत होती है
पर वो संपूर्ण माँ बन कर ही होती है
माँ बन कर ही उसके अंदर की
 ममता स्फुटित होती है
बच्चा जब माँ माँ बुलाता है
माँ भीतर तक गदगद होती है

माँ एक अतिसुंदर शब्द है, इसकी सुन्दरता
माँ बन कर ही अनुभव होती है

Sunday 4 August 2013

मन रे

मन रे ,  मन रे
खुद में हो जा मगन
व्यापक हो जा जैसे गगन
मन रे, मन रे

सबको खुद निर्णय लेने दे

किसी को रोक ना
किसी को टोक ना
तू कुछ बोल ना
किसी को तोल ना

मन रे ,  मन रे
खुद में हो जा मगन
व्यापक हो जा जैसे गगन
मन रे, मन रे 

Saturday 3 August 2013

पतिदेव

फुर्सत के किन्ही लम्हों में
हम पतिदेव के साथ बैठे थे
उन्हें मूड में देखकर हम बोले
अपनी कवितायेँ सुनाये क्या?

ये सुन उनका  चेहरा उतर गया
हम कुछ जोर से बोले
पत्नी को प्रोत्साहन नहीं दे सकते
4 कवितायेँ लिखी हैं छोटी छोटी
लेकिन सुनायेंगे सिर्फ दो
ये धीरे से बड़बड़ाये ,अच्छा सुनाओ

हम कवितायेँ सुनाने लगे
पर इनके भाव विहीन चेहरे को
 देखकर हम समझ गए
ये अच्छे पति की तरह
 सर तो हिला  रहे हैं
पर एक कान से सुनकर कविता
दुसरे कान से बाहर उड़ा रहे हैं

तुम्हारी यादें

सागर किनारे मैं बैठी
आती जाती लहरों को देख रही
कुछ लहरें दूर से ही चली जातीं
कुछ पास आकर मुझे भिगो जातीं

ऐसे ही प्रिय तुम्हारी यादें
कभी दूर से ही निकल जातीं
कभी पास आकर मुझे रुला जातीं 

माँ मेरी माँ ही नहीं


माँ मेरी माँ ही नहीं
वो गुरु भी है और सखी भी

मैं अपनी माँ की लाडली हूँ
मैं नाजों से पली बढ़ी हूँ

माँ हर पग पर मुझे संभालती है
दुःख में ढाल  बन जाती है
सुख में उत्साह बढाती है
जीवन के हर पहलु को
प्यार से समझाती है
गलती करने पर डांटती  है
सांसारिक बातो के साथ साथ
वो अध्यात्मिक द्रिस्टान्त  भी सुनाती है
इसलिए मैं कहती हूँ

माँ मेरी माँ ही नहीं
वो गुरु भी है और सखी भी  

Wednesday 31 July 2013

अमिताभ बच्चन

कविता लिखने का शौक भी अजब शौक है
इसमें लिखने से ज्यादा सुनाने का दिल करता है

अभी हमारी कविताएँ जरा मध्यम  स्तर  की हैं
तो रिश्तेदारों को पकड़ कर सुनाते हैं
बाहर वालों की घेराबंदी अभी नहीं कर पाते हैं

कल रात हमारे साथ कुछ गजब ही हो गया
अमिताभ बच्चन जी सपने में हमारे घर आये
बोले, मैडम सुना है, आप बहुत अच्छी कवितायेँ लिखती हैं
जरा हमें भी सुनाइए
हम न झिझके, न शरमाये
पूछा, आप ठंडा या गर्म कुछ लेंगे
वो बोले, फोर्मेलटी न करें, बस शुरू हो जाएँ
हम उन्हें एक के बाद एक कवितायेँ सुनाते रहे
वो बीच बीच में मुस्कराते रहे

अचानक मेरे पतिदेव ने मुझे झकझोरा
बोले, कब तक सोओगी , दोपहर होने को आई
मैंने इधर उधर देखा और कहा
अये हये ये क्या किया, सब बिगाड़  दिया
अच्छी भली बच्चन जी को कविताये सुना रही थी
अच्छा अब बैठो,बाकी  की कवितायेँ तुम सुनो
ये जल्दी से रसोई की ओर भागे
जाते जाते बोले,तुम्हारे लिए चाय बनाता हूँ
जल्दी से उठ आओ
मैं मन मसोस कर रह गयी , क्या करती
उठी और हाथ मुहँ धोने लगी



आप इसे मेरी आवाज में you tube पर भी सुन सकते है
'Amitabh Bachchan' - A poem by Sunita Katyal
https://www.youtube.com/watch?v=n8anrp8v3Kc

Monday 29 July 2013

यादों के नासूर

उनकी यादों के नासूर को
हमने अपने दिल के कोने  में
जैसे रुई के फाहों के बीच
 मुलायमियत से छिपा रखा है
जो कभी सूखता नहीं
सिर्फ और सिर्फ दुखता है 

चुभन

दिल से दिल का तार कहीं जुड़ा था
उन्हें मेरे प्यार का आभास तो था
आज जब मैं उन्हें याद करती हूँ
 दिल में उनके भी चुभन तो होती होगी 

पानी ही जीवन है

पानी ही जीवन है,
पानी की हर इक बूँद कीमती है
सुना था बहुत,
पर कभी ध्यान न दिया था

कुछ दिन पूर्व मैं बेटे के साथ मुंबई गयी
सोचा था घर जा कर नहायेंगे
तरोताजा हो कर खाना बनायेंगे
घर पहुँच कर देखा,
टंकी में पानी की इक बूँद भी नहीं है
ये पता चला आज सुबह पानी नहीं आया
सोचा अब करें क्या
तभी बेटा २० लीटर पानी का जार
२०० रूपए में ले आया
बोला, माँ इससे काम चलाओ

इतना महंगा पानी
मैं ये कल्पना करने लगी
पानी की ऐसी कमी रही
तो अगली पीढ़ी पानी के लिए
 लड़ेगी और झगड़ेगी
मैं ये सोच कर सिहर गयी

तब मैंने ये संकल्प लिया
अब पानी व्यर्थ न बहने दूँगी
खुद भी पानी की बचत करूंगी
दूसरों को भी समझाऊँगी

पानी ही जीवन है,
पानी की हर इक बूँद कीमती है

Sunday 28 July 2013

तनाव सिर्फ तनाव

किसी अपने को हॉस्पिटल में बिस्तर पर पड़ा देखकर, हो जाता  है
तनाव सिर्फ तनाव 
हॉस्पिटल में फैला होता है चारों ओर
तनाव सिर्फ तनाव 
भागते हुए डॉ., नर्सों और अटेंडेंटस के चेहरों पर होता है 
तनाव सिर्फ तनाव 
बीमार और तीमारदार के चेहरों पर होता है 
तनाव सिर्फ तनाव 
रोगी का क्या इलाज होना है,उसे क्या दवाई देनी है 
किस दिन क्या होगा, कौन,कौन सा डॉ विजिट करेगा
तनाव सिर्फ तनाव 
हॉस्पिटल में रात को कौन रुकेगा, दिन भर कौन रहेगा 
जरा जरा से काम पर अटेंडेंटस मांगते हैं टिप
कितनी देनी है, देनी है या नहीं देनी है 
तनाव सिर्फ तनाव 

पर कुछ केरल वासी नर्सों के चेहरों पर होती है केवल मुस्कराहट 
वो हमें देखकर मुस्कराती है, हम उन्हें देख मुस्कराते हैं 
उनकी मुस्कराहट और सेवा भावना से 
माहौल सोहार्दपूर्ण हो जाता है 
और फिर घट जाता है फैला हुआ तनाव 


Thursday 25 July 2013

आदमी एक दमी

स्वर्गीय ज्ञानी संत मसकीन जी को समर्पित 


                         1

होनी तो हो कर रहे, अनहोनी न होय 
चिंता उसकी कीजिये, जो अनहोनी होय



                            2

भूत काल की यादें,
होती हैं कब्र की तरह 
और भविष्य की चिंताएँ,  
होती है चिता समान 
वर्तमान में जीना सीख ले बन्दे
तू बन जायेगा भगवान 



                            3

जानता  है तू, वर्तमान क्या है 
वर्तमान एक दम है जो अंदर गया,
जो दम बाहर चला गया, वो भूतकाल 
जो दम आएगा, वो भविष्य होगा 
इसलिए ऐ बन्दे मन को वर्तमान में 
टिका कर जीना सीख 



                              
                            

जिंदगी

गर जिंदगी की राह को
करना चाहते हो आसान
युवाओं से करो दोस्ती
और बुजुर्गों का सम्मान 

Tuesday 23 July 2013

कभी हम दुखी ,कभी तुम दुखी

दुनिया अजब गजब सी है यारा
कभी हम दुखी ,कभी तुम दुखी

जब हम दोनों थे जवां
न हम दुखी , न तुम दुखी

जैसे ही अपनी उम्र बढ़ी
हम भी दुखी और तुम भी दुखी

कभी बूढ़े माँ बाप को देख कर दुखी
कभी बच्चों की सुन कर दुखी

कभी इस कारण से हुए  दुखी
कभी उस कारण से हुए  दुखी

मन को हमने बहुत समझाया
इसको बहुत प्रवचन सुनाया
फिर भी हुआ न ये सुखी

दुनिया अजब गजब सी है यारा
कभी हम दुखी ,कभी तुम दुखी

Monday 22 July 2013

इक था बचपन

आज का बचपन भी क्या बचपन है
टी. वी और कंप्यूटर में
कुछ गुम सा हो गया है

इक था बचपन ,हमारा बचपन
प्यारा सा,भोला सा बचपन
इक था बचपन ,इक था बचपन


तब टीवी और फ्रिज न था
वहां कार न थी और ए. सी न था
 प्रकृति से हमारा नाता था
वहां आम भी थे और अमरुद भी थे
वहां खिन्नी भी थी और लीची भी थी
वहां बेर भी थे और बेल भी थे
वहां लोकाट और फालसे भी थे
करोंदों से लदा इक झाड़ भी था
झाड़ पर चढ़ी सेम की बेल भी थी
फलों और सब्जियों की रेलमपेल थी

वहां गाय भी थी और भैंस भी थी
वहां घी, ढूध, दही की बहार थी
वहां पिज़्ज़ा और बर्गर न था
फिर भी मजा ही मजा था

गर्मियों में टैंक में नहाते थे
आंधी आने पर जामुन और
 अमिया बीनने निकल जाते थे
वहां जब बौछार पड़ती थी
सोंधी सी बयार बहती थी

रात को आँगन में पानी छिड़क कर
हम चारपाईयों पर लेट जाते थे
तारे गिनते गिनते हम
न जाने कब सो जाते थे

हम खेलते भी थे और पढ़ते भी थे
हम लड़ते और झगड़ते भी थे

वो बचपन आज भी याद आता है
सपनों में यदा कदा दिख जाता है
ये था हमारा प्यारा सा बचपन
भोला और न्यारा सा बचपन

इक था बचपन ,इक था बचपन 

भक्ति

मुझे ज्ञान नहीं
प्रभु तेरी भक्ति चाहिए
मुझे कुछ और नहीं
केवल अनन्य भक्ति चाहिए

तेरी रजा में रहूँ राजी
मुझे ऐसी शक्ति चाहिए

प्रारब्ध में जो भी मिले
उसमें ही तृप्ति चाहिए

मुझे जीवन मरण से डर नहीं
इस जनम में ही मुक्ति चाहिए

मुझे ज्ञान नहीं
प्रभु तेरी भक्ति चाहिए
मुझे कुछ और नहीं
केवल अनन्य भक्ति चाहिए

Sunday 21 July 2013

कल

क्यूँ  सोचती हूँ मैं
कल कैसे होगा , क्या होगा 

तन्हाइयों के आलम से 
मुझे खुद को उबारना होगा 

समुद्र की लहरों की तरह 
बुरे विचार ,जो बार बार आते हैं 
उन्हें दूर हटाना होगा
खुद को विश्वास दिलाना होगा 
 योग-क्षेम संभालता है जो सबका 
वो रब मेरे भी साथ होगा 

मुझे सोचना होगा कुछ इस तरह
कल जो  होगा सुनीता जी 
अच्छा  होगा, अच्छा ही होगा 

Saturday 20 July 2013

उम्र पचपन की

 कल मैंने एक खबर पढ़ी
विदेश में एक 80 वर्षीय वृद्ध ने
25 वर्षीय महिला से शादी करी

मैंने जल्दी से अपनी उम्र गिनी
मेरे मियां 60 के हुए
तो मेरी उम्र पचपन की हुई
मैंने फटाफट अपने बाल रंगे
नए फैशन के कपड़े पहने

 फिर छोटे बेटे से पूछा
मुझ पर ये ड्रेस जंचेगी या नहीं जंचेगी
मुझे जीन्स टाप में देख कर
वो मुहँ छिपा कर हंसा
फिर जोर से खिलखिलाया
बोला  माँ ,जंचेगी पर कम जंचेगी

मैं सोच में पड़ गयी खड़ी खड़ी
देश और विदेश में फर्क बहुत है
हाय अभी मेरी उम्र ही क्या है

छोटे को हँसता देख कर
बड़े बेटे से कुछ भी पूछने की
 मेरी हिम्मत न पड़ी 

Thursday 18 July 2013

हाय बुढ़ापा बाय बुढ़ापा

बचपन भी बीता ,जवानी भी बीती
अब बुढ़ापे का आगमन हो चुका है
हाय हाय बुढ़ापा ,हाय हाय बुढ़ापा 

आँखें भी रूठी,मोतिया-बिन्द के कारण
कान भी रूठे , ऊँचा सुनने लगे हैं
घुटने भी रूठे,आर्थराइटिस के कारण 
ब्लड प्रेशर और सुगर  के स्तर
अपनी मर्जी से चढ़ने ,उतरने  लगे हैं 
थाइरोइड ने वजन पहले से ही बढ़ाया है
डॉ कहता है वजन घटाओ 
बहनजी तुम कुछ कम खाओ 
हमने कहा ,सुबह और शाम 
डॉ साहेब एक एक रोटी खाते हैं 
वो बोला ,एक खाती हैं तो आधी खाओ 
खाओ या न खाओ ,पर वजन घटाओ 

हम कुढ़े पर फिर मुस्कराए 
डॉ खुद दुबला पतला ,गंजा ,मरिअल सा है 
हमारी सेहत देख कर जल भुन गया है 
बस ये सोच कर हम खुश हो गए 
रास्ते में ही हमने आइसक्रीम खायी 
आइसक्रीम ,मगर शुगर फ्री थी 

घर आकर खुद को हिम्मत दिलाई 
हिम्मत कर सुनीता तू हिम्मत कर 
जैसे बचपन बीता और बीती जवानी 
वैसे ही एक दिन बुढ़ापा भी बीतेगा 
तब तू मुस्कराना और कहना 
बाय बाय बुढ़ापा ,बाय बाय बुढ़ापा 

Tuesday 16 July 2013

चांदनी

रात मैंने चाँद देखा
साथ में चांदनी भी थी
चांदनी ऐसी खिली खिली थी
जैसे आज सजना से मिली थी

उन्हें देख रात की रानी भी  खिल गयी
हरसिंगार भी महकने लगा
हवा मंद मंद बहने लगी
मैं भी कुछ शरमाई सकुचाई सी
हाथ पकड़ कर सजना का
बोल नहीं कुछ पाई थी
हौले से बदल करवट
मुस्कराते हुए
न मालूम कब सो गयी थी 

Saturday 13 July 2013

मन की शांति

ना किसी को समझाना है 
ना किसी को बदलना है 
विचारों से विचारों को समझाकर 
मन को शांत करना है 

Wednesday 10 July 2013

प्रभु का शुकराना

सूरज के निकलने में
फूलों के खिलने में
चिड़ियों के चहकने में
हरसिंगार के महकने में
स्वांसों के चलने में
शाम के ढलने में
काली घटा छाने में
मौसम सुहाने में
चाँद के निकलने में
साजन से मिलने में
रात को सोने में
सुबह को जगाने में

प्रभु का शुकराना है
कोटि कोटि शुकराना है

"भाई रे मत तुम जानो
और किसी के कुछ हाथ है "     

Monday 8 July 2013

चाहत

         हमे चाहत उस रब से लगानी है क्योंकि

Sunday 7 July 2013

प्रभु


                                           एक 

प्रभु तू क्या चाहता है
कुछ समझ न आता है

राजा को रंक बनाता है
और रंक को राजा बनाता है
प्रभु कैसा ये खेल रचाता है
कुछ समझ न आता है

कभी सुनामी लाता है 
कभी भूकंप मचाता है 
हर ओर हाहाकार मच जाता है 
कुछ समझ न आता है 

                                                दो 
                                      
प्रभु ऐसी परीक्षा न लिया करो 
हम बच्चे तेरे नादान हैं 
इक तुम्ही हमारा सहारा हो 
तुम्ही विश्वास हमारा हो 
हम पर दया किया करो 
प्रभु ऐसी परीक्षा न लिया करो 



पुरवैया

यादों ने दुखी किया रे ,
दिल हर समय उन्हें ही चाहे
ऐ पुरवैया ढून्ढ के लाओ
न जाने वो कहाँ रे .

Saturday 6 July 2013

यारा

तुमने क्या सोचा तुम्हारे जाने के बाद
 हम बिखर जायेंगे
यारा हममें इतना हुनर है कि
बिखर के भी संभल जायेंगे 

सीखना

जीवन की परेशानियों से वो ही लड़ पाता है
जिसको खुद से लड़ना आता है
चिड़िया का बच्चा खुद उड़ना सीख जाता है
उसे कोई नहीं सिखाता है
गिर के जो खुद उठ जाता है
उसे संभलना आ जाता है 

Thursday 4 July 2013

बेअन्त

संत मसकीन जी को श्रद्धांजलि स्वरुप समर्पित 
जो कि कई वर्ष पूर्व बेअन्त में समां चुके है। 



कभी कभी मैं सोचती थी
मैं कौन हूँ ,मैं कहाँ से आई
और कहाँ को जाना है ,

अब इस उम्र में पता चला
जीवन का एक लक्ष्य बनाना है
मुझे बेअन्त  में समाना है
मुझे बेअन्त  में समाना है ,

स्वांस स्वांस अनमोल है
नर तन का बड़ा मोल है
समय व्यर्थ न गंवाना है
मुझे बेअन्त  में समाना है

जीवन की सांझ है आ चुकी 
आगे दिख रहा अंत है 
मुझे अंत के आगे जाना है 
मुझे बेअन्त  में समाना है

जहाँ नित्य नवीन आनंद है 
जहाँ आनंद ही आनंद है 
मुझे आनंद में समाना है 
मुझे आनंद में समाना है .

Wednesday 3 July 2013

रात की रानी

सर्दी के मौसम में ,रात ढले
जब रात की रानी  महकती थी

मैं वो ही गीत गुनगुनाती थी
जिसको सुन,तुम रुक जाते थे
हौले से मेरे कंधों पर दोनों हाथों से
शाल ओड़ाते थे
संग संग मेरे तुम भी प्रिये
 फिर वो ही गीत गाते थे

टहलते टहलते सर्द हवा में
हम सुध बुध जैसे खो जाते थे .

Tuesday 2 July 2013

जीवन एक युद्ध-भूमि

Meet everybody and every circumstance on the battlefield of
life with the courage of a hero and the smile of a conqueror.
               SRI SRI PARAMAHANSA YOGANANDA


जीवन एक युद्ध-भूमि है
मुस्करा कर साहस से
विजेता की तरह युद्ध खेल तू

गम आये तो झेल तू
परिस्थितियों को हटा परे
सबसे कर ले मेल तू

जीवन एक युद्ध-भूमि है
मुस्करा कर साहस से
विजेता की तरह युद्ध खेल तू 

Sunday 30 June 2013

बीते दिन

सावन जब झूम के आता है
बीते दिन याद दिलाता है 
मैं पहन के जब लहंगा चोली
माँ  के  घर अंगना में डोली 

डैडी जब घेवर लाते थे 
माँ तू खीर बनाती थी 
बाँध के राखी भाइयों को 
मैं खीर ,मिठाई खिलाती थी 

अब वो दिन सब बदल गए 
भाई दोनों परदेस गए 
अब राखी लिफाफों में जाती है 
उन्हें मेरी याद दिलाती है 

माँ अब भी खीर बनाती है 
और मुझे बुला खिलाती है 
 मै उनका मन बहलाती हूँ 
बीते दिन याद दिलाती हूँ 

मैं पहन के जब लहंगा चोली 
उनके घर अंगना में  डोली .

Saturday 29 June 2013

ढलती उम्र

मैं बैठी घर के अंगना में
कुछ तनहा सी ,कुछ उदास सी
अचानक बिजली चमकने लगी
बरखा भी बरसने लगी
मैं उठ भीतर को चली
तभी पीछे से आवाज ये आई
कहाँ चली तुम कहाँ चली
आओ संग संग भीगें हम
बीते दिनों को याद करें
मैं उन्हें देख कर मुस्कायी
बोली, प्रिये  अब अपनी है उम्र ढली
ये मनचली अब नहीं भली
तभी मेघा  जोर गरजने लगे
बादल घनघोर बरसने लगे
ये जल्दी से  भीतर आये
हम खूब हँसे और खिलखिलाए .

Friday 28 June 2013

बेटी

जब मेरा बेटा ब्याहाया
वो मेरे लिए बहु नहीं बेटी लाया

 वो ठुमक ठुमक जब चलती है
पायल तब रुन झुन बजती है
मेरा घर-आँगन खिल जाता है

वो जब सजती संवरती है
वो जब  खिल खिल हंसती है
मेरा तन मन खुश हो जाता है

प्रभु तेरा शुकराना है
तूने दिया मुझे नजराना है




Wednesday 26 June 2013

कुछ हल्का फुल्का

बच्चों सुनाये क्या तुम्हे अपनी कहानी
भरी जवानी में भी हमने न की  कोई नादानी

अब तो भूल गए सब ,यारों दोस्तों से की थी जो मुलाकातें
याद है सिर्फ और सिर्फ घर गृहस्थी की बातें
सुबह जगाने के लिए पतिदेव पिलाते हैं चाय
ऑफिस जाते समय हम उनको करते हैं बाय बाय
फिर माता श्री से होती है गुफ्तगू
फिर थोडा सा आराम और सहेलियों से गुटरगूं
शाम को मोबाइल से पूछते हैं बच्चों का हाल चाल
रात को बनाते  हम रोटी और दाल

बस अब तो रह गयी यही जिंदगी
थोड़ी गृहस्थी और रब से बंदगी 

Sunday 23 June 2013

जलप्रलय

जल प्रलय की इस त्रासदी में
कितने फंसे ,कितने  बचे और कितनी गयी जानें
ये तो राम ही जाने

जिन्हों ने खोया अपनों को
वो अभी भी उन्हें ढूँढ रहे
वो बह गए मलबे पानी में
उनका दिल नहीं माने

कितने फंसे ,कितने  बचे और कितनी गयी जानें
ये तो राम ही जाने

देख कर मंजर बिछी लाशों का
आँखें नम हो जाती हैं
और गला रुंध जाता है
 क्यों हुआ ऐसा ,ये कोई नहीं जाने

कितने फंसे ,कितने  बचे और कितनी गयी जानें
ये तो राम ही जाने

Saturday 22 June 2013

दुआ

खुदा कबूल करता है
दुआ जब  दिल से होती है
बढ़ी  मुश्किल है य़े
 बढ़ी मुश्किल से होती है



UNKNOWN 

Monday 17 June 2013

पहला प्यार

उनकी यादों से भीगी आँखें और धुंधली हुई नजर
घटा बन कर यूँ जब वो दिल में  छाए थे
भूलना चाहती हूँ की वो कभी मेरी जिंदगी में आये थे
पहले प्यार के   गीत   हमने भी   गुनगुनाये   थे 

शामे-अवध



पान की गिलोरी
महकते बेला के गजरों के नज़ारे 
कुल्फी और कॉफ़ी की दुकानों पर लोगों की कतारें
सड़क के दोनों ओर जगमगाती रौशनी की लड़ियाँ
शामे-अवध का अजब ही समा है
रात को  गंजिंग का अपना  अलग ही नशा है 

Monday 27 May 2013

नूर

कोयल की कुहू कुहू ,
आम के बौर की भीनी सी खुशबु ,
अमलताश के पीले फूलो की लरियाँ ,
गुलमोहर के लाल लाल फूलो की झरियाँ ,
सुबह की मंद मस्त हवा ,
प्रकृति में रचा  बसा हर ओर तेरा ही नूर है,
प्रभु तेरा ही  नूर सब में भरपूर है. 

याद

जब जब भी तुम याद आते हो ,
अश्क बन कर आँखों से बह जाते हो,
दुनिया बदल गयी हमारी तुम्हारी,
फिर भी न बिसराए जाते हो ,
अश्क बन कर आँखों से बह जाते हो .